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अन्वेषण गतिविधियाँ और रूपरेखा

देश में सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ ऊर्जा की मांग बढ़ेगी। देश अपनी कच्चे तेल की ज़रूरत के लगभग 83% और प्राकृतिक गैस के मामले में लगभग 47% के लिए आयात पर निर्भर है। ऊर्जा आपूर्ति और मांग के बीच अंतर को पाटने के लिए  पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय देश में अन्वेषण और उत्पादन कार्यकलापों में तेजी लाने के लिए प्रतिबद्ध है।

अन्वेषण और उत्पादन (ईएंडपी) क्षेत्र में सुधार 1991 में तेल और गैस क्षेत्र की निजी और विदेशी कंपनियों की भागीदारी के माध्यम से शुरू किए गए थे जब वर्ष 1991-93 के दौरान 28 खोजे गए क्षेत्रों (एनईएलपी-पूर्व खोजे गए क्षेत्र) की नीलामी की गई थी। इसके अलावा, 28 अन्‍वेषण ब्‍लॉकों को 1990-1997 के बीच प्रदान किया गया, जिन्‍हें एनईएलपी-पूर्व अन्‍वेषण ब्लॉक कहा जाता है। इसके बाद 1997- 99 में नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (एनईएलपी) और कोल बेड मीथेन (सीबीएम) नीति के कार्यान्वयन के बाद अन्‍वेषण रकबों के लिए राष्ट्रीय तेल कंपनियों (एनओसी) के लिए यथा लागू वित्तीय और संविदागत शर्तें लागू करके निजी निवेशकों को समान अवसर प्रदान किए गए थे। की पेशकश की खोज के लिए।

पेट्रोलियम और हाइड्रोकार्बन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख नीतिगत अभियान में, सरकार ने कई पहलें शुरू की हैं। हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में सुधार घरेलू तेल और गैस उत्पादन बढ़ाने, निवेश बढ़ाने, बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने, पारदर्शिता बढ़ाने और प्रशासनिक विवेकाधिकार को कम करने के मार्गदर्शक सिद्धांतों पर आधारित हैं। सरकार ने अन्‍वेषण और उत्‍पादन के क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए नई नीतियों का निर्माण किया है जिनमें अन्‍य बातों के साथ-साथ निम्‍नलिखित शामिल हैं -

  • गैस मूल्य निर्धारण संबंधी सुधार।
  • सीबीएम के प्रारंभिक मौद्रीकरण के लिए नीतिगत ढांचा।
  • खोजे गए लघु क्षेत्र (डीएसएफ) नीति।
  • घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए सुधारपरक पहलें शुरू करना।
  • हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (एचईएलपी) और खुला रकबा लाइसेंसिंग नीति (ओएएलपी)।
  • रत्ना अपतटीय क्षेत्र का मौद्रीकरण।
  • कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और उसकी सहायक कंपनियों को कायला खनन क्षेत्र में सीबीएम का उत्‍खनन करने की अनुमति।
  • एनईएलपी-पूर्व खोजे गए क्षेत्रों और अन्वेषण ब्लॉकों के विस्तार के लिए नीति।
  • पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के लिए हाइड्रोकार्बन विजन 2030।
  • गैर-मूल्‍यांकित क्षेत्रों का राष्ट्रीय भूकंपीय कार्यक्रम।
  • नेशनल डाटा रिपोजिटरी (एनडीआर)!
  • उत्‍पादन हिस्‍सेदारी संविदाओं (पीएससीज), सीबीएम संविदाओंऔर नामांकन क्षेत्रों के मॉजूदा रकबों में गैर-पारंपरिक हाइड्रोकार्बन के अन्वेषण और दोहन की अनुमति देने के लिए नीतिगत ढांचा।
  • पीएससीज की कार्यपद्धति को सुव्यवस्थित करने के लिए नीतिगत ढांचा।
  • तेल और गैस के लिए वर्धित निकासी पद्धतियों को प्रोत्साहित करने के लिए नीति ढांचा।

अपस्ट्रीम क्षेत्र में दो अपस्ट्रीम राष्‍ट्रीय तेल कंपनियों (एनओसीज)  ऑइल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) और ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) की अग्रणी भूमिका है और उनकी वर्ष 2017-18 में देश में तेल उत्पादन में लगभग 71.5% और गैस उत्‍पादन में 81% हिस्‍सेदारी है।  ओएनजीसी लगभग 61% स्वदेशी कच्चे तेल और देश के गैस उत्पादन का 71.5% उत्पादन करती है  जबकि ओआईएल की हिस्सेदारी 10% स्वदेशी कच्चे तेल और 9% गैस उत्पादन की है। तेल और गैस उत्पादन में निजी/संयुक्‍त उद्यम कंपनियों की हिस्सेदारी क्रमशः 29% और 19.5% है

भारत सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) की स्‍थापना वर्ष 1993 में की गई थी। डीजीएच की स्थापना का उद्देश्य पेट्रोलियम कार्यकलापों के पर्यावरण, सुरक्षा, प्रौद्योगिकीय और आर्थिक पहलुओं के बीच संतुलन बनाए रखते हुए भारतीय तेल और प्राकृतिक गैस संसाधनों के श्रेष्‍ठ प्रबंधन को बढ़ावा देना था। । इसके अलावा, खोजे गए क्षेत्रों/अन्वेषण ब्लॉकों के लिए उत्पादन हिस्‍सेदारी संविदाओं, खोजे गए लघु क्षेत्र नीति, हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और उत्पादन नीति (एचईएलपी) तथा अन्‍वेषण और उत्‍पादन संबंधी कार्यकलापों की निगरानी सहित नीतियों के कार्यान्वयन के माध्यम से निवेश को बढ़ावा देने से संबंधित कुछ जिम्मेदारियों के साथ डीजीएच को मजबूत बनाया गया है।

भारत में अन्‍वेषण और उत्‍पादन व्‍यवस्‍थाओं का कालक्रम

भारत हाइड्रोकार्बन विजन 2025 के अनुसार, 100% भारतीय तलछटी क्षेत्र का मूल्यांकन किया जाना है। ऑनलैंड क्षेत्र में 1.63 मिलियन वर्ग किलोमीटर (48.5%) और अपतटीय क्षेत्र में 1.73 मिलियन वर्ग किलोमीटर शामिल हैं। अब तक, केवल 48 प्रतिशत बेसिन क्षेत्रों का मूल्यांकन किया गया है। रक्षा मंत्रालय/पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा लगभग 4% तलछटी बेसिन क्षेत्र को "नो गो एरिया" घोषित किया गया है, जो अभी भी अनभिज्ञ है। इसका मतलब है कि लगभग आधे भारतीय तलछटी घाटियों में हाइड्रोकार्बन की अनदेखी क्षमता है।

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