Minister of Petroleum and Natural Gas
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एनआरएल को वर्ष 1993 में चालू किया गया था और यह एक श्रेणी-I मिनी रत्न सीपीएलई है। वर्तमान में कंपनी में बीपीसीएल की 61.65%, ओआईएल की 26% और असम सरकार की 12.35% की शेयरधारिता है। यह असम के नुमालीगढ़ में 3 एमएमटीपीए क्षमता का एक रिफायनरी तथा नुमालीगढ़ एवं सिलीगुढ़ी में दो मार्केटिंग टर्मिनल प्रचालित करता है । एनआरएल के पास में नुमालीगढ़ में 42 टीएमटीपीए एलपीजी क्षमता का एक बॉटलिंग संयंत्र भी है । कंपनी नॉर्थ ईस्ट इंडिया की सबसे बड़ी रिफायनरी है और देश में पैराफिन वैक्स की सबसे बड़ी उत्पादक है।
एनआरएल ने 22,954 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से अपनी रिफायनरी का 3 एमएमटीपीए से 9 एमएमटीपीए तक के क्षमता विस्तार पर लगा है। सीसीईए से अनुमोदन प्राप्त होने के बाद परियोजना की गतिविधियाँ शुरू हो गई हैं। इस मेगा परियोजना में आयातित कच्चे तेल की ढुलाई के लिए पारादीप, ओडिशा से नुमालीगढ़ तक 1398 किलोमीटर और नुमालीगढ़ से सिलीगुड़ी तक 654 किलोमीटर की पाइपलाइन बिछाना शामिल है।
एनआरएल ने अपने मूल व्यवसाय को एक डाउन-स्ट्रीम कंपनी के रूप में स्थानांतरित करते हुए नए आधार की तलाश की है। सिलीगुड़ी में अपने टर्मिनल से बांग्लादेश तक से उत्पादों की ढुलाई के लिए 130 किमी. की भारत-बांग्ला मैत्री पाइपलाइन (आईबीएफपीएल), संयुक्त उद्यम कंपनी 'असम बायो-रिफायनरी प्राइवेट लिमिटेड' के माध्यम से देश की पहली बाँस आधारित 2जी बायो-रिफायनरी की स्थापना एवं और खुला रकबा लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी) के तहत अपस्ट्रीम अन्वेषण और उत्पादन व्यवसाय की शुरुआत की है।
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