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उत्पाद मूल्य निर्धारण

पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्य निर्धारण को जुलाई 1975 से प्रभावी प्रशासित मूल्य तंत्र (एपीएम) के तहत लाया गया था जब पेट्रोलियम उत्पादों का मूल्य आयात समतुल्यता सिद्धांतों से लागत आधारित सिद्धांतों पर  स्थानांतरित कर दिया गया था । एपीएम (1975 से 2002) के तहत विभिन्न तेल पूल खातों को निम्नलिखित उद्देश्यों से बनाए रखा गया था,- (i) बिक्री मूल्य में स्थिरता सुनिश्चित करना; (ii) अंतर्राष्ट्रीय मूल्य में उतार-चढ़ाव से उपभोक्ताओं को बचाए रखना; और (iii) पेट्रोल, एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) आदि और स्वदेशी कच्चे तेल जैसे अन्य उत्पादों के माध्यम से क्रॉस सब्सिडी द्वारा सार्वजनिक वितरण और घरेलू एलपीजी के लिए केरोसिन जैसे कुछ उत्पादों के उपभोक्ता मूल्य में सब्सिडी प्रदान करना।
दिनाँक 01.04.2002 से एपीएम हटा लिया गया और सरकार ने बजट के तहत निर्दिष्ट फ्लैट दरों पर पीडीएस केरोसिन और घरेलू एलपीजी की बिक्री पर सब्सिडी प्रदान करने का निर्णय लिया। इन बजटीय सब्सिडी को प्रशासित करने के लिए, सरकार ने 2002 में एक 'पीडीएस केरोसिन और घरेलू एलपीजी सब्सिडी योजना' तैयार की। इस योजना के तहत यह निर्णय लिया गया कि इन सब्सिडियों को 3-5 वर्षों में समाप्त किया जाएगा।
भले ही 1.4.2002 के बाद से एपीएम अप्रभावी हो गया हो, वर्ष 2004 से संवेदनशील पेट्रोलियम उत्पादों यथा,- पेट्रोल (विनियंत्रण की प्रभावी तिथि 26.06.2010), डीजल (विनियंत्रण की प्रभावी तिथि 19.10.2014), पीडीएस मिट्टी के तेल और घरेलू एलपीजी  के उपभोक्ताओं को सार्वजनिक क्षेत्र के तेल विपणन कंपनियों (ओएमसीज) अर्थात् आईओसीएल, एचपीसीएल और बीपीसीएल के माध्यम से अभूतपूर्व उच्च अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों के प्रभाव से बचाया गया है।
 

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